अरमानों के गुच्छे

अरमानों के मधुर स्वप्न संजोए
नव जीवन में मुस्काने बिखेरते |
चहुँ ओर सजते हैं सपनों के फूल
कोमल कलियाँ शूलों मे खिलते फूल|
हर खूँटी पर टँगे अरमानो के गुच्छे
इक-इक कर के खुलते ये मोहक गुच्छे |
अरमान हों पूरे हर धड़कन की पुकार
कुंडियाँ लग जातीं, मिलते न विचार |
खुल भी न पातीं कुंडियाँ, कि ताले लग जाते
खुलने की आस में ताले जंगाल खा जाते |
जंगाल हटाने के यत्न में चाबी ही गुम जाती
अरमानों की लाशें ढोए ज़िंदगी ही बुझ जाती ||

वीना विज ‘उदित’

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