हिंदी दिवस पर एक हल्का- फुल्का आलेख

यहां यू. एस में किसी ने मुझसे कहा ‘आप अपनी रचनाऍं रोमन अंग्रेज़ी में भी लिखें, जिससे हम पढ़ सकें|भाषा भी ईज़ी होनी चाहिए, जो समझ आ सके|वही जिसमें हम -आप बोलते हैं|वैसे बैस्ट तो यही रहेगा कि आप कैसेट ही बनवा दें, जिससे हम कार में सुन सकें|एक्चुअली यहां टाईम बहुत कम मिलता है न ,आपको तो पता ही है|इस तरह हिन्दी भी एन्जाँय कर सकेंगे,और लगेगा हम अपने देश के करीब हैं|’..हमारे देशवासी जो विदेशों में जाकर बस गए हैं,सच पूछिये तो वे अपनी माटी की सुगंध पीछे ही छोड़ आए हैं|विदेशी ‘राँल्फ ऍंड लाँरेन’, इन्ट्यूशन,ब्यूटीफुल, प्वाईज़न,प्लैज़र आदि की सुगंध ने उन्हें अपने से बाँध लिया है|

<भारत के विद्यालयों एवम महाविद्यालयों में जो हिन्दी पढ़ी थी, वो मिसीसिप्पी-मसूरी नदियों में विसर्जित कर दी गई है|वे अंग्रेजीयत में खाने, पीने व जीने लगे हैं|अब ऍसे माहौल में आप हिन्दी साहित्य की क्या बातें करेंगे|बहुत लफड़े हैं, विदेश में अपने देशवासियों को हिन्दी-साहित्य के प्रति आकर्षित करने के लिये|वहीं घोर आश्चर्य होता है, जब अन्तर्जाल से आपकी काव्य और कहानी की किताबें विदेशी मूल के लोग खरीदते हैं|एक आस की किरण दिखाई देती है कि आज भी हिन्दी साँस ले रही है|
विदेशों में हिन्दी को बचाने के लिए अन्तर्जाल का आकर्षण काम कर गया है|हर कवि व लेखक एक प्लेट्फाँर्म पर आना चाहता है, और यह प्लेट्फाँर्म दिया है ..अन्तर्जाल ने| लगता है , अपने देश में नहीं , अपितु अन्तर्जाल पर ही हिन्दी का फलने -फूलने का भविष्य निर्भर है|
पढ़ने वालों की भारत में भी बहुत कमी है|यहाँ समय की कोई कमी नहीं है, किन्तु इच्छा, जिज्ञासा, उत्साह,उमंग की भारी कमी है|सस्ता साहित्य तो हाथों हाथ बिक जाता है| अच्छे साहित्य की बावत आप प्रकाशकों से पूछे कितना बिकता है?सोचने की बात है कि यहाँ के लेखकों व प्रकाशकों का क्या भविष्य है?हिन्दी साहित्य की भारी भरकम बातें करने वाले दिल पर हाथ रखकर सच्चाई से कहें कि क्या वे आज के वक्त में घर का खर्च साहित्य के बल-बूते पर चला सकते हैं?…नहीं न! तो कहाँ से आएगा वो साहित्य जो सदियों तक अपने पैरों के निशां छोड़ेगा| कहा है न कि ‘भूखे पेट होए न भजन गोपाला|’ फिर ऍसे में वैसा साहित्य कैसे लिखा जाएगा?यह बहुत ही गम्भीर समस्या है, हमें इससे कैसे निबटना है, पहले हिन्दी सम्मेलनों में इस पर विचार होना चाहिए|

आज के युग में जनता दूर-दर्शन की दीवानी है|एकाध चैनल हो तो कुछ कहें|ढेरों चैनल और उनपर ढेरों सीरियल चलते हैं|पुराने समय में जिस वक्त गृहणियाँ पुस्तकें व पत्रिकाएं पढ़ा करतीं थीं, अब वे दूर-दर्शन पर सीरियल्स से जुड़ी रहतीं हैं|सो ज़ाहिर है कि ४०% पाठक तो हमने यूं खो दिए, बाकि के राम भली करें|मुन्नाभाई एम. बी .बी.एस जैसी फिल्मों से जनता विशेषकर युवा- वर्ग की हिन्दी तो रसातल में चली गई है|वे अटपटी हिन्दी बोलने लगे हैं|अब आप बताएं कैसे बचाया जाए हिन्दी- साहित्य को? पिछले दिनों एक नामी अख़बार में ऍसी भाषा की कविताएं भी पढ़ने को मिलीं|अब हिन्दी भाषा कितनी समृद्ध हो रही है, यह तो हिन्दी के ठेकेदार जान लें|
हिन्दी भाषा बचाने के लिये लम्बे- लम्बे व्याख्यान देने वाले राजनेता व नामी साहित्यकारों के परिवारों के बच्चे हजारों व लाखों के डोनेशन देकर अंग्रेजी स्कूलों में भर्ती कराए जा रहे हैं|साईंस या विज्ञान की पढाई के लिए अंग्रेजी पढ़ना अनिवार्य है|हमें इससे कब इन्कार है|पर वे ढिंढोरा तो न पीटें|महेशचन्द्र द्विवेदी के हास्य व्यंग्य में कितनी सच्चाई है ‘पाठकों तक अपनी बात पहुँचाने के लिए हिन्दी दिवस को अंग्रेजी में मनाना पड़ेगा और हिन्दी के पक्ष मे प्रबुध्द पाठकों को कोई संदेश देना चाहते हैं तो भाषणों को अंग्रेजी में छपवाईए|’
आज का कटु सत्य यह भी है कि हमारा भारत हंग्रेजी भाषा में जी रहा है|कई बार आप परेशान हो जाते हैं कि इस विशेष शब्द को हिन्दी में क्या कहते हैं|उल्झन सही है|कारण–अंग्रेज हमें अपनी भाषा का गुलाम बना गए हैं|राजनैतिक रूप से हम स्वतंत्र हो गए हैं, लेकिन सान्स्कृतिक व आत्मिक रूप से हम सदा से उनके गुलाम बन गए हैं|पैदा होने के बाद से बच्चे को टा-टा, बाय -बाय से अंग्रेजी शुरू कर दी जाती है|पहले जन्मदिन पर किसके घर केक नहीं कटा..जरा बतायें तो?या किसके घर ‘ हैप्पी बर्थ डे’ नहीं गाया गया? किसी भी पार्टी में आप कोट -पैंट की जगह धोती- कुर्ता तो नहीं पहनते न! सो,हिन्दी सम्मेलन चाहे विश्व हिन्दू सम्मेलन हो या राष्ट्र हिन्दी सम्मेलन|भारत में हो या न्यूयार्क में|सब जगह सुननेवाले कम अपितु भाग लेनेवाले ही चारों ओर दृष्टिगोचर होते हैं|सबको बातें करते सुनिए …कहते हुए हँसी आती है कि आधी अंग्रेजी तो चल ही रही होती है|किसी की क्या कहें आप सच- सच बताएं कि आपका लिखा आपके घर में कितने लोग पढ्ते हैं|पहले अपना परिवार सँभालिए फिर बाहर सुधारें|जहाँ स्वतंत्रता दिवस घर बैठकर मनाते हो, वहीं हिन्दी दिवस भी मना लो|क्यों शोर मचाते हो!!!

वीना विज ‘उदित’

3 Responses to “हिंदी दिवस पर एक हल्का- फुल्का आलेख”

  1. jevilalva Says:

    बिल्कुल सहि कहा आप्ने, हमेन सोच्ना होग. word verification बदा हाता देन्..
    jay barath

  2. pratima dwivedi Says:

    सही कहा….हमें हिन्दी सम्मेलनों में इस पर विचार होना चाहिए|

  3. pratima dwivedi Says:

    सही कहा….हमें हिन्दी सम्मेलनों में इस पर विचार होना चाहिए|वरना हमारी भाषा अपनो के बीच बेगानी हो जाएगी…हमें ही हिन्द का अस्तित्व बचाना है

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