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मेरी मनीषा

Thursday, October 2nd, 2014

आकुल, व्याकुल मेरी मनीषा ऊर्ध्व -द्वार पर टकटकी लगाए| शुभ्रचन्द्र के निर्मल प्रकाश से आलोकित नभ में स्नान की चाह जगाए| चेतना की वीणा के तार प्यासे मिलन को मानो धेवत -स्वर में त्रिष्टुप मिल जाए | अन्तः की प्यास बुझाने को मेघ अमृत भरे स्वर्ण- कलश नभ से लुढकाए| प्राची से उमढते वायु के […]