Archive for December 18th, 2008

शेर

Thursday, December 18th, 2008

इन्तहाई परेशां हूँ ज़िस्म का दामन बचाऊँ कैसे बढ़ता चला आ रहा है नंगी परछाईयों का कारवाँ || वीणा विज ‘उदित’