Archive for August 10th, 2008

ग़ज़ल

Sunday, August 10th, 2008

पशेमां ना हो मचलती तमन्नाओं दिल में ही बैठे हैं रुख़्सत हो जानेवाले.. बेहद अकीदत से पुकारा किए उनको तर्क़ कर चल दिए लौट के ना आने वाले.. ना होगा दीदार ना मिलेंगी अब उनकी बाहें लौट के आते नहीं रूठ के जाने वाले.. ग़माफ्जा क्यों हो, कुछ तो तरस खाओ नाचीज़ पर क़रम करो […]

कदमों की थाप

Sunday, August 10th, 2008

जीने पर चढ्ते भारी भरकम जूतों के कदमों की थाप सुनते ही कढ़ाई में चलती मेरे हाथ की कड़छुली वहीं रुक गई |मैं अपने ध्यान में काम में मस्त थी, किन्तु अब आगुन्तक को देखने को आँखें दरवाज़े की ओर लग गईं |जूतों की थाप बता रही थी कि कोई बहुत थका है या सोच […]