Archive for January 21st, 2008

झीने रिश्ते

Monday, January 21st, 2008

कुछ झीने रिश्ते कितने कोमल कितने कच्चे जब फटते कुतरे जाते चाहे टँकें लगें चाहे रफू करें दोबारा वैसे न बन पाते बेढ़ब्बे पैबन्द दिखते अँधियारी सियाह रातें ढँक लेतीं उसे अपनी सियाहियों से दिन के उजाले सह नहीं पाते उनका होना लेकिन— यह माँस में धँसे नाखून कुतरे तो जाते हैं निकाल कर फेंके […]