Archive for October 17th, 2007

ग़ज़ल……..क्यों हो?

Wednesday, October 17th, 2007

हमदम तुम मेरे फिर भी अधूरे क्यों हो ? मेरे होते हुए तुम तन्हा क्यों हो? हर लम्हा ढूंढती नज़रें चिल्मन के पीछे क्यों हो? रूए-सहर हो मेरे अज़मत पर ख़फ़ा क्यों हो? महताबे हुस्न लिए हुए मुझसे रूठे क्यों हो? आगोशे -करम पाते हुए बेचैने तबियत क्यों हो? क़तरा-क़तरा पिघलते हुए शर्मो-हया से भरे […]