भोर का तारा

художници на икониकोई कलरिंग -किताब नहीं है बाल-मन
जिसमें भर देंगे आप अपने मनचाहे रंग |
उसके अन्तस से प्रस्फुटित होंगे
रंग-बिरंगे सतरंगी नवरंगी ढेरों रंग |
बहने दो ना रंगों की सरिता में उसे
उभरने दो ना उसकी आत्मा में चाहत के रंग |
बाल-सुलभ उड़ान को भर लेने दो बाँहों में आसमान
फिर देखो कैसे निखर कर आएंगे रंग |
उसके पसंदीदा रंगों से भरें उसका दामन
सँभालकर रखें आप अपने पसंदीदा रंग |
चहुँ ओर के रंगों में अटका बाल-मन
चुननें दें उसे प्रकृति से स्वप्निल रंग |
अंतरिक्ष में उकेरेगा वह इक नया आसमाँ
बिखेरकर अपने अंतस के इन्द्रधनुषी रंग |
ज़मीं पर चमचमाता भोर का तारा बाल-मन
तूलिका से रंगेगा गगन में ,अरुणिम भोर का रंग | |
वीणा विज ‘उदित’

One Response to “भोर का तारा”

  1. Anonymous Says:

    आत्ति उत्तम… यह एक कफि उत्तम प्रदर्शन है और हम इस कविता से कफि हि ज्यादा खुश है इस से हमे इस से कफि मदद मिलि है……धन्यावाद….!!!

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