देश की क्यारी

свети минаПравославни икониचमन की बेतरतीब लुभावनी क्यारी
दामन थामे बहार का खिलखिलाती
ढेरों रंग-बिरंगे फूल इक साथ उगाती
लगे, बागबान की मूढ़ बुद्धि दर्शाती
नया जमाना, हर रंग चाहे अपनी क्यारी
अस्तित्व की होड़ में टहनियाँ भिड़ जातीं
अखंड़ भारत के गुल्शन में रहें सब साथ
जात-पाँत की व्याधि ग़ार में ड़ुबाती
छोटे-बड़े, अमीर-ग़रीब का भेद मिटा
हरिजन बना बापू ने जलाई दीप में बाती
तेज झोंकों में टहनियाँ फूल का संबल बनतीं
पश्चिमी आँधी से हिन्दू-संस्कृति कैसे बच पाती
तामिल, तेलगू की न बने अलग क्यारी
मिले-जुले फूलों से सजे मेरे देश की क्यारी
हर रंग, हर आकार, हर जात का फूल साथ खिले
बागबान की ऍसी भूल पा मैं जाऊं वारि-वारि…….

वीणा विज ‘उदित’

Leave a Reply