टूटी उम्मीदें

टूटी उम्मीदों का बोझ उठा सको तो जानो ,
रिसते छालों को बहता देखो तो जानो|
जब कदम बढ़ते हैं आशा की किरणें ले,
इक टीस जन्मती है संग ही बुझती लौ में|
जीवन जीते हैं हम-तुम इक आस ले ,
नई सुबह की रोशनी में बुन सुनहरे सपने|
बढते हैं कदम वर्त्तमान के थपेडे सहते हुए,
राह आए रोड़ो को ठोकरों से टकराते हुए|
दूर क्षितिज में गिरकर सितारे अस्तित्व खोते हैं,
जलते पतंगे शमा के दामन में देख दिल रोते हैं|
चारों ओर अधूरी इच्छाओं के दृश्य दृष्टिगोचर होते हैं,
जब बेबसी के आँसू समुद्रों में तूफान लाते हैं|
समय की क्रूरता का वज्र कैसे सहे जर्जर काया,
भीगे आँचल में छिपा कलियों को फूल बनाया|
टूटी-पुरानी,घिसी चप्पलें अब ढ़ूंढती हैं ऍसे कील को,
राह आखरी पार कराए जो,ले जाए अंतिम मंज़िल को|
काश! कोई सह सकता उम्मीदों का टूटना,
चलती-फिरती लाश बन जाता है इंसान का जीना|
जलती उम्मीदों के ढ़ेर में ढ़ूँढ़ते हैं वो आँचल का दूध,
बर्फानी -हवाएँ कब समझ पाती हैं,थकते पसीने की बूँद|
सँभलो अब भी, कुछ अपने लिए भी जी लो,
उम्मीदों को रख ताक पर आज को अपना लो ||

वीणा विज’उदित'(
(सन्नाटों के पहरेदार -से)

Leave a Reply