चुभन (दूसरा भाग)

रजत की साधारण नौकरी उनके लिए कोई मायने नहीं रखती थी | वे अपनी बेटी से बेहद प्यार करते थे, तभी उसकी खुशी के लिए उन्हें झुकना पड़ा | दो प्यार करने वालों को मिलाकर अब वे हार्दिक प्रसन्नता व आत्मिक शान्ति का अनुभव कर रहे थे | वे अपनी लाडली बेटी को हर हाल में प्रसन्न देखना चहते थे | और यहाँ उस प्यार भरे जीवन की ऍसी शुरूआत…! दुःख व घबराहट से शगुना के आँसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे |पाँव पत्थर के हो गए थे | रजत सोफे पर ही सो गया था | उधर शगुना की पलकों की सेज पर मीठे सपने सो रहे थे | उसका मन और तन प्रीतम के बाहुपाश के लिए लरज़ रहा था | आज पाँच दिनों से उसके कान उसके प्यार के बोल सुनने को तरस रहे थे | यही सिलसिला चल रहा था |दिन दिखावे में बीतता, …सब को लगता मानो शगुना का संसार महक रहा हो | लेकिन रात… रात एकांत में …वीरान होती |
रजत ने उससे मिलने या बोलने का यत्न ही नहीं किया | शगुना को हर पल आस रहती कि शायद अब रजत उसके क़रीब आएगा | पीछे से पर्दा हिलता तो उसे लगता पीछे से रजत उसे अपनी बाहों में कस लेगा| वह ऍसी शरारतें ही तो किया करता था | लेकिन हर आहट उसे धोखा दे जाती | वह मायूस हो जाती | वह किसी से भी बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती थी |
शगुना अति सुन्दर, सुशील व आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी थी | उसके रूप व गुण की चर्चा सब ओर होने लग गई थी |रजत के अफ़सरों ने उन्हें भोजन के लिए निमंत्रित किया |वे शगुना से अति प्रभावित हुए , रजत को भाग्यशाली कहने से भी चूके नहीं |शगुना रजत के चेहरे के भावों को पढने क यत्न करती कि कहीं इन बातों से उसमें कमतरी का अहसास तो जन्म नहीं ले लेता? वह सबके समक्ष साधारण बातें करता, लेकिन फिर अकेले में चुप ..|शगुना के मन में झंझावत उठता कि वह रजत के मन की बात कैसे जाने| आखिर वह क्या बात है जो प्रथम -रात्रि से उसे उससे दूर किए हुए है ?रजत के पिता अफ़्सर थे, कोठी पुरानी अवश्य थी उनकी पर –तीन ओर बागीचे थे व चौथी ओर दूसरी कोठी लगती थी |घर में हम उम्र ननद थी, शगुना उसी के साथ सारा वक्त बिताती थी | उनकी ही उम्र की एक आदिवासी नौकरानी भी घर में काम करने आती थी | कोठी के बाहर चौकीदार की बीवी भी थी | वह आधे घूँघट से शगुना को निहारती रहती थी | फिर लम्बी साँसे भरने लगती थी | शगुना को वो कुछ अजीब सी लगती और उसके हाव-भाव से शगुना घबरा सी जाती थी |उसे लगता कि शायद यह उसकी चोरी पकड़ रही है कि शगुना अभी तक अपने प्रीतम के अंग-संग नहीं हो पाई है |शगुना झट भीतर दौड़ती ,दरवाज़ा बंद करके जी भर के रो लेती—फिर बनावटी मुखौटा पहने बाहर निकलती |
पहाड़ जैसे बड़े दिन ,और मीलों लम्बी रातें शगुना से काटे नहीं कटतीं थीं | रजत रात को कमरे में आ भीतर से कुंडी लगा लेता,व पिछले दरवाज़े से घर से बाहर निकल जाता | ” नाइट ड्यूटी है “—कह जाता |शगुना अवाक खड़ी रह जाती | आज उसे शादी के दिन की सुबह की एक घटना याद आई, जब रजत ने उसकी फ़ास्ट-फ्रैंड नीला से कहा था कि किसी भी तरह वह उसे शगुना से दो घड़ी के लिए मिलवा दे –उसे उससे कुछ बात ज़रूरी करनी है | मेहमानों व रिश्तेदारों से भरे घर में से नीला व उसके पति ने शगुना को बहाने से ले जाकर पास के शिव-मन्दिर की बागीची में मिलाया था | परेशान सी शगुना रजत के पास पहुँची तो उसका आँचल वहीं गुलाब की एक झाड़ी में अटक गया | रजत के मुँह से हठात निकला, ” काँटों में दामन क्यों उल्झा रही हो, ज़्ख्मी हो जाएगा ?” शगुना उसका तात्पर्य समझे बिना तत्क्षण प्रत्युत्तर में बोली थी, “काँटॉं में उलझकर ही तो गुलाब मिलेगा न!” बस बिना कुछ और बात किए वे सब घर वापिस आ गए थे |शगुना के दिमाग़ की वो पहेली, आज उसे कुछ सुलझती जान पड़ रही थी | उसकी शादी हुए एक सप्ताह बीत गया था | वह क्या कदम उठाए ? उसके मनोःमस्तिष्क पर यह बात हथौड़े की तरह चोट कर रही थी |
बी.ए पास करते ही तो विवाह-बंधन में फँस गई थी वो |सरल-हृदय से वो यही मानती थी
कि जिसे प्यार किया, उसी को जीवन-साथी बनाना चाहिए |तभी तो यह विवाह संभव हुआ था | लेकिन अपने प्यार– अपने जीवन साथी से कुछ भी पूछने का साहस वो अपने
भीतर जुटा नहीं पा रही थी | आज आठ दिनों बाद भैया-भाभी वापिस नौकरी पर चले गए थे |ननद काँलेज व ममी -पिताजी किसी के घर शाम को वापिस आने का कहकर चले गए थे |सो, एकांत पाकर शगुना किचन गार्डेन में जहाँ एक ओर बड़े-बड़े कटहल लटके हुए थे ,एक कुर्सी बिछाकर सामने पेड़ पर अमरूदों को निहारते हुए हाथ में पकड़ी पुस्तक को पढने में तल्लीन हो गई |आहट होने पर देखती क्या है कि रजत भी एक कुर्सी पकड़े हुए उसकी ओर आ रहा है |उसके सामने ही कुर्सी रखी व बैठ गया | बैठते ही उसने मुस्कुराकर शगुना का दाहिना हाथ अपने दोनो हाथों में ले लिया |शगुना इस अप्रत्याशित व्यवहार से हैरान हो ,काँपने लगी |उसकी आँखों से अश्रुधाराएं बहने लगीं |हाथ को हौले-हौले दबाते हुए उसने पूछा कि क्या वो उससे नाराज़ है? शगुना उसकी आँखों में तकने लगी |शगुना का पागल मन फिर सपनों की उड़ान भरने लगा | वो बोला कि वह तो उसके धैर्य की परीक्षा ले रहा था | बेहद अटपटी सी बात थी, किन्तु शगुना हैरान थी कि वह रजत से कोई गिला-शिकवा क्यों नहीं कर रही थी ? एक पल भी न गँवाते हुए रजत ने लाइटर से एक सिगरेट सुल्गाई | व बोला, “शगु! ज़रा अपना हाथ इधर लाना, देखूँ सिगरेट की जलन तुम कितनी देर तक सह सकती हॉ !शगुना मंत्रमुग्ध सी, अपना बाँया हाथ उसके आगे कर दिया |हथेली के पिछली ओर रजत ने सुलगता हुआ सिगरेट लगा दिया |शगुना इस जलन को कोई इम्तिहान जान कर दाँत भींच कर सहती रही, चेहरे पर निर्विकार भाव धारण किए हुए |जब वो जलते हिस्से का माँस जलकर काला होने लगा , तो रजत ने सिगरेट हटाई |उसके विचार इस अजीबो-ग़रीब शर्त को अपने प्रथम – मिलन की याद मानने से विमुख हो रहे थे |
शगुना को उपन्यास पढने का शौक था | लेकिन ऍसा अनोखा मिलन तो उसने कभी नहीं पढा था |क्या यही प्रेम था उनके बीच ? खैर…उसने शर्त जीती थी , आग की जलन सहकर ..अब आगे क्या मोड़ लेगा रजत का रुख़, उसे इन्तज़ा था| रजत ग़हरी सोच में डूबा
सिगरेट के क़श लेने लगा था | अचानक वह उठकर शगुना के पीछे जाकर खड़ा हो, उसके
बाँए कंधे पर हाथ रखकर बोला ,”शगु !नया जीवन आरम्भ करने स पूर्व मैं तुम्हे दो कहानियाँ सुनाना चाहता हूँ , सुनोगी न!” शगुना ने चुपचाप “हाँ” में सिर हिला दिया |
पहली कहानी—–एक कुलीन परिवार का लड़का व उसी श्रेणी की लड़की आपस में बेहद प्यार करते हैं | उनके परिवार में सब उन्हें पसंद करते हैं |उनकी शादी होने लगती है कि एक रात लड़के के कुछ दोस्त आते हैं| वे सब मिलकर वहाँ के डाक-बंगले में खाने के लिए जाते हैं| वहाँ एक भली सी ग़रीब लड़की उन्हें खाना परोसती है | जवानी की मस्ती में डूब उनमें से दो लड़के उस निरीह लड़की को बार-बार छेड़ते व उसका आँचल खींचते
हैं |वह भला लड़का उनको ऍसा करने से रोकता है |पर वे कहाँ माननेवाले.? इस पर वह गुस्से में उनसे भिड़ जाता है |हाथापाई होने पर एक दोस्त हैरान होकर कहता है,” वाह! तुझे बड़ा दर्द हो रहा है, तूँ ही बना ले इसे अपनी |अरे ,इसे तो हर दिन कोई न कोई कुछ न कुछ सुनाता ही होगा| आज तूं अपने दोस्तों से इस के लिए लड़ाई मोल ले रहा है ,कल-परसों इसे कौन बचाएगा? तेरा दिल इसके लिए दुःखता है, तो थाम ले इसका हाथ |बना ले इसे बीवी ,करता रह इसकी रखवाली |उठ ..उठ न!!! जोश में होश कहाँ रहता है?
बस , अगले ही पल उसने सबके सामने उस ग़रीब लड़की का हाथ पकड़ा और उसे लेकर डाक-बंगले के दाईं ओर पीपल के पेड़ के नीचे एक छोटे से मंदिर में जाकर वहाँ माता की मूर्ति के सामने उसे जीवन-पर्यन्त अपनी जीवन साथी बनाने की कसम खा ली |मूर्ति के माथे पर भक्तों के लगाए गए सिंदूर से ही उसने उसकी माँग भी भर दी | पलक झपकते ही सब अप्रत्याशित घटित हो गया था |सारे संगी -साथी चुपचाप वहाँ से खिसक लिए थे |उस रात वह उस अंजान लड़की के मिट्टी के घर में ही रहा, उसे अपनाने व अपना सहारा देने के लिए |उस ग़रीब लड़की ने अपनी राम-कहानी सुनाई कि उसका मर्द उसे दूसरे गाँव से ब्याहकर लाया था, पर वह किसी और की बीवी को भगाकर न जाने कहाँ चला गया था | उसे बेसहारा व नितांत अकेली छोड़कर |डाक-बंगले के बूढ़े चौकीदार काका ने तरस खाकर उसे यहाँ खाना बनाने व परोसने का काम लगवा दिया था |उधर जिस लड़की को वह दिलोजान से चाहता था, जिससे उसकी शादी होने वाली थी, जो दिन-रात उसी के सपने देखती रहती थी उसका अब क्या होगा |जोश में उसने जो कदम उठा लिया था, यह सच्चाई जानकर क्या वो यह सदमा सह सकेगी ..?
शगुना के होंठों पर उंगली रखकर उसे कुछ भी न कहने का अवसर देकर रजत बोला–दूसरी कहानी सुनो !
एक लड़का है|उसके घरवाले उसका विवाह एक जान-पहचान की बहुत ही सुशील ,सुन्दर व पढ़ी-लिखी लड़की से करना चाहते हैं |वह लड़का निरंतर उन्हें मना करता है ,क्योंकि वह किसी लड़की से घरवालों से चोरी पहले ही गुप्त -विवाह कर चुका होता है |लेकिन उसकी एक नहीं चलती, और उसका विवाह कर दिया जाता है |अब वो लड़का क्या करे ? उसे यह विवाह अपनी पहली बीवी के प्रति घोर अन्याय लगता है |अब वह अपनी कथित पत्नी को हाथ भी नहीं लगाता, जो कि इस वास्तविकता से अनजान है |तो यह उसके प्रति भी अन्याय है |वह लड़का इंसाफ़ करना चाहता है |उसकी अतंर आत्मा उसे झकझोड़ती है |एक रात वह सपना देखता है कि उसे सज़ा हो गई है, वह जेल चला गया है |उसके चले जाने पर वह दूसरी कथित पत्नी वहाँ से चली जाती है ,जबकि वह पहली वाली बीवी मुंडेर पर दिया जलाए बरसों उसकी बाट जोहती रहती है | यह सपना उस लड़के के दिलो-दिमाग पर छा जाता है |अब वो लड़का क्या निर्णय ले…?
कहानियाँ सुना चुकने पर रजत ने जैसे ही शगुना की ओर देखा तो उसकी आँखों से गंगा-जमुना बह रही थीं |अपने दोनो हाथों से उसने शगुना का चेहरा प्यार से ढाँप लिया |शगुना का पूरा बदन सूखे पत्ते की तरह कम्पन्न कर रहा था |वह रजत की दोनो कहानियों का विश्लेषण कर उन्हें अपने से जोड़ने का एक विफल प्रयास कर रही थी |वह जोर-जोरसे हिचकियाँ लेकर रो पड़ी |रजत उसकी रुलाई देखकर घबरा उठा, बोला” शगु! कुछ बोलो, चुप क्यों हो?” लेकिन…वह उसे सँभाल नहीं पाया |आख़ीरकार रजत ने अपने दोनो हाथों से उसे उठाया व अंदर बैडरूम में लेजाकर लिटाया |वह प्यार से उसका चेहरा सहला रहा था, पर शगुना …! शगुना निर्जीव सी पड़ी थी |कुछ अनहोनी घटने की आशंका
से उसकी सोचने की शक्ति निःष्प्राण हो चुकी थी |रजत अब घर में ही सोता था , एक ही बिस्तर पर दोनो अपने ख्यालों में गुम एक्-दूसरे से विमुख होकर पड़े रहते |एक दिन मौका देखकर रजत ने पूछा,” ऍसा कुछ तुम्हारे साथ घट जाए तो तुम्हारा रवैया क्या होगा ?”शगुना समझ चुकी थी कि उसके धैर्य को आजमाने का नाटक रजत ने क्यों रचा था |उस पर ऍसी ग़ाज़ गिरेगी कि सब कुछ टूट कर चूर-चूर हो जाएगा, यही बात उसके गले नहीं उतर रही थी |
उसे लगा वह जग-हँसाई का केन्द्र बन कर रह गई है |माँ-बाप, भाई-बहन, रिश्ते-नाते ,पहचान वाले सब जानते थे कि उसने यह विवाह अपनी ज़िद पर अड़कर किया था |
असीम विश्वास था उसे अपने प्यार पर | उसी प्यार की डोर से बँधी खिंची चली आई थी वो रजत के पास | एक से एक अच्छे रिश्ते उसने ठुकराए थे , अपने रजत के लिए | आज वही रजत उसके धैर्य को आज़मा रहा था | मन चाहा वो रजत का चेहरा नोच ले |
तार-तार करदे उसके कपड़े, मुक्के मार-मार कर लहू-लुहान करदे उसका सीना और फिर जोर-जोर से अट्टहास करे उसकी हालत पर….!लेकिन , उसने ऍसा कुछ भी नहीं किया |
वो ठंडी बर्फ की सिल की भाँति निःश्चल पड़ी रही | उसे तेज बुखार हो गया था | वह चुपचाप लेटी हुई छत की ओर टकटकी लगाए देखती रहती |उसके मायके से भाई उसे लिवाने आ गया, ४-५ दिनों में बुखार उतरते ही छाती पर मनों बोझ लिए वो भैया के साथ अपने मायके चली गई –रजत के प्रश्न का उत्तर दिए बिना | जाते हुए वह रजत की बेबस आँखों के भाव पढ रही थी जिनमें पीड़ा व हताशा थी |
माँ के पास पहुँचकर उसकी रुलाई का बाँध फूट पड़ा |पहले तो माँ ने इसे उदासी समझा, लेकिन उसका सूखा व निःस्तेज चेहरा देखकर वे भीतर से परेशान सी हो गईं |शगुना न किसी के साथ हँसती न बात करती |दोनो छोटी बहनें जो अपने लिए किसी
उपहार की आस लगाए थीं , दीदी पहली बार उनके लिए न जाने क्या-क्या भेंट लाएगी |वे
दीदी को देखकर सहम गईं थीं |शगुना सारा -सारा दिन पलंग पर लेटी शून्य में तकती रहती |हाँ! डैडी के आने पर हँसने व नाँर्मल रहने का मुखौटा अवश्य ओढ लेती थी |लेकिन डैडी तो इस बात से हैरान थे कि शगुना के मुख पर सदा खुशी देखने के लिए ही उन्होंने उसका कहना माना था , फिर यह हँसी फीकी क्यों है? शगुना के मामले में शक की कहीं गुँजाइश नहीं थी , इसलिए सब इसे सेहत की गड़बड़ी समझ अपनी-अपनी जगह चुप थे |
शगुना ने अपने मन को संयत रखने के लिए सात्विक भोजन खाना प्रारम्भ कर दिया |भूमि को शैय्या बना लिया | मन की भटकन को रोकने के लिए उसने डैडी की अल्मारी से दर्शन-शास्त्र की किताबें निकाल उनमें ध्यान लगा लिया | उसे आई जानकर एक दिन उसकी चारों सहेलियाँ इकट्ठी होकर उससे चुहलबाजी करने आ धमकीं |खूब छेड़ा उन्होंने
शगुना को , कि शगुना का मन रजत की बाहों में समा जाने के लिए मचल ही उठा |अपनी बेबसी के चलते वो क्या करती ?वह उनके जाते ही बाथरूम में जाकर दो घंटे निरंतर नहाती ही रही –तन की क्षुधा को शाँत करने के यत्न में |इस विषय में उसने कभी कहीं पढा था | सजने -सँवरने का तो उसका ज़रा भी मन नहीं करता था ,अपने चेहरे से उसे वितृष्णा हो गई थी | असीम सौन्दर्य की स्वामिनी थी शगुना; पर जो सौन्दर्य उसके पिया को न लुभा सका वो कैसा सौन्दर्य….???
अभी एक महीना भी न बीता था कि रजत उसे वापिस लिवाने को आ पहुँचा | दामाद की खूब आव-भगत हो रही थी |

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