गज़ल-‘ख़ता’

बेहद शिद्दत से पुकारा ज़िंदगी को
‘इश्क’ मेरे दामन में उसने भर दिया |
डूबे हैं इस कदर बेख़ुदी में अब
कि होश ही दर-किनार रख दिया |
मसला सँभलता नहीं मरीज़े-दिल
तसव्वुर ने उनके चैन हराम कर दिया |
किसको दीजे इल्ज़ाम आशिकी में
अपने ही हाथों काम तमाम कर दिया |
तन्हाइयों में रखते थे जो आरजूएं
उनका चर्चा सरे आम कर दिया |
मेरे मौला! मुआफ़ कर ख़ता मिरी
तिरे नाम से उनका नाम बदल दिया |
हैरान है ‘ वीणा’ आज क़ायनात सारी
सजदे में उनके कलमा पढ़ दिया ||
वीणा विज’ उदित’

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