आँचल में बाँध सिसकी

अपने अल्फ़ाज़ों के नश्तर
मेरे अन्तस में चुभोकर
शराफ़त का मुखौटा ओढ़े
तुम बन जाते महान सदा!
नख से शिख तक काँप उठती
आसमां सिर से ज़मीं पर आ गिरता
तन में बहता लहू लावा बन जाता
मूक रुदन से दब जाता लावा!
झूठी चमक ओढ़ चेहरे पर
खिलखिलाती मेरी सूनी बहार
रुके-रुके शबनम के क़तरे
ज़हन को चीरते बन मल्हार!
साँसों की रवानगी बढ़ जाती
अहसासों को लकवा मार जाता
सुन छद्म अहं की दम्भ भरी बात
तुम्हे तुम में ही तलाशने लग जाती !
पल-पल हर पल कुढ़-कुढ़ जीना
तंग आ तुमसे पलायन करना
फिर जाना दुनिया में कोई ठौर नहीं
तुमसे बँधी तो तुम बिन कोई और नहीं !
क़तरे पंखों से कितना उड़ती
पुनः-पुनः अपनी दहलीज़ पर लौटती
‘दिल -जानिया’ कहलाने को tarasatI
कैसे जीऊँ आँचल में बाँध सिसकी….???
वीणा विज ‘उदित ‘

9 Responses to “आँचल में बाँध सिसकी”

  1. M Verma Says:

    रुके-रुके शबनम के क़तरे
    ज़हन को चीरते बन मल्हार!

    बहुत सुन्दर

  2. परमजीत बाली Says:

    बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

    पल-पल हर पल कुढ़-कुढ़ जीना
    तंग आ तुमसे पलायन करना
    फिर जाना दुनिया में कोई ठौर नहीं
    तुमसे बँधी तो तुम बिन कोई और नहीं !

  3. om arya Says:

    बहुत हि गहराई है आपकी रचना के भाव के हर एक पंक्ति मे ……………….सुन्दर अभिव्यक्ति !

  4. Sundar Says:

    अति सुन्दर!

  5. surya Says:

    अति सुन्दर्

  6. chandra prakash Says:

    DEAR VIJ

    IT IS A NICE PIECE OF WORK IN HINDI.IT WOULD BE FURTHER NICE

    IF LANGUAGE HAS BEEN LITTLE MORE SIMPLE.

    PREM CHAND KI SADGI NE JITNA BHALA HINDI KA KIYA HEY, UTNA KLIST SHELLY KO APNA KAR HUM HINDI KA BHALA NAHI KAR PAYE HEN.

    HINDI KE LIYE SATAT PRYAS KE LIYE DHANYAVAD.

    CHANDRA PRAKASH

    EK AAM AADMI

  7. Usha oberoi Says:

    प्रिय दिद अप्ने भुत अचा .लिखा हए. एसि त्र्ह लिखा करे.

  8. Udita Bhatia Says:

    बहुत ही सुन्दर रचना है आपकी , दिल को छू गई है हमारे!!!!! क्या बतायें अपना हाल आपको ?
    ऍसे ही लिखते रहे आप सदा,ये ख़्वाहिश है हमारी!!!!!!!!!!!!!

  9. Harish Bhatt Says:

    थन्क्स्

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